और अनेक से एक की ओर चलने की धारा प्रतिसंचरण कहलाती है।
2.
वह एक अनेक कैसे बना? शिवरात्रि हमें अनेक से एक की ओर ले जाती है।
3.
ये दोनों एक ही हैं तथा एक से अनेक और अनेक से एक तत्व की अद्भुत अभिव्यक्ति है.
4.
अनेक से एक, फिर एक से शून्य, तब कौन बचेगा? तब सागर बचता है, जो सदा से था।
5.
एक से अनेक और अनेक से एक के संबंधों की सतर्क एवं बुद्धिसंगत व्याख्या जैसी उपनिषदों में प्राप्त होती है, अन्यत्र प्रायः अप्राप्य है|
6.
६. एक से अनेक और अनेक से एक के संबंधों की सतर्क एवं बुद्धिसंगत व्याख्या जैसी उपनिषदों में प्राप्त होती है, अन्यत्र प्रायः अप्राप्य है |
7.
एक से अनेक और अनेक से एक होने की उक्ति गायत्री के ज्ञान और विज्ञान से सम्बन्धित-अनेकानेक दिशाधाराओं से सम्बन्धित-साधनाओं की विवेचना करके विभिन्न पक्षों को देखते हुए विस्तार के रहस्य को भली प्रकार समझा जा सकता है।
8.
लय या प्रलय के समय मैं पुनः “ अनेक से एक ” होने की इच्छा करता हुआ, प्रक्रति व माया लीन हिरण्यगर्भ को स्वयं में लीन करके पुनः अक्रिय, असद, परमसत्ता-“ पर-ब्रह्म ” बनकर अव्यक्त बनजाता हूं।
9.
भईया दो को एक प्रकृति भी नही कर पाती बिना एक का अंत किये, एक का तो अंत होना ही है (देश प्रेम और देश द्रोह एक ही शरीर में नही रह सकते) लेकिन (जय हो) देश के इन टाप के मैथमैटीसियनों की द्वय को एक करने पर आमादा हैं,, भईया एक से अनेक हो सकता है लेकिन अनेक से एक होने में एक या कुछ का अंत तो होना ही है ……
10.
इससे बड़ा चमत्कार कुछ है ही नहीं | कैसे यह एक अनेक बन गया? यह प्रथा (शिवरात्रि) जिसमें अनेक से एक की और बढ़ना कितना अद्वितीय है | योग और ध्यान इस के लिए आवश्यक हैं | ध्यान के बिना मन शांत नहीं होगा | शिवरात्रि के दौरान ध्यान, भजन उत्सव का अंग हैं | सब लोग पूरे उत्साह से इसमें भागलेते हैं | सबको गाना चाहिए | शिव सब कार्यों के कर्ता हैं | जिनकी वजह से सब कुछ है-उगते हुए पेड़, उगता हुआ सूरज, बहती हुई हवाएँ...